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शुक्रवार, 3 जून 2016

फेसबुक 3


ये मेरी अत्यधिक छोटी छोटी कवितायेँ वे हैं जो मैंने जब तब फेसबुक पर व्यक्त कीं हैं|
7
15/7/2014 
दिल टूटता है टुकड़े भी होते हैं।
हर टुकड़े में महबूब तेरी वेवफाई है।
दिल टूटे या रहे बस उसी से लगाने की कसम खाई है।
8
15/7/2014
तेरी छवि मेरे उर में है,
जैसे कोई एंटासिड,
फ़ैल रहा हो अंतड़ियों में,
धीरे धीरे धीरे।
9
09/01/2015
एब्दो शार्ली के दफ्तर पर हुए हमले और उसके पुनर्प्रकाशन की घोषणा पर
कलम से बंदूक का मुकाबला क्या?
बंदूक से कभी किसी का हुआ भला क्या?
तुम्हारी गोलियाँ कुछ हाथ गिरा देंगी।
पर कलमकारी का रुकेगा सिलसिला क्या? 
युग बीते बीत गये हत्यारों के निशान,
पर कलम का तेज थोड़ा भी हिला क्या?
हमलावर मरता, मारता या भाग लेता है,
कभी टूटते देखा है शहीदों का हौसला क्या?

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