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सोमवार, 24 मार्च 2014

लकब

सच पूछिए तो आज भी किसी को उचित रूप से सम्बोधित करने के मामले में मैं आज भी उतना ही मूर्ख हूँ जितना मैं आज से बहुत पहले था। फरवरी 2000 में मैंने एक मुक्तक लिखा मुझे आज भी ताजा लगता है। आप भी मुलाहिजा फरमायें---
किसी ने कह दिया होगा,'चाँद' उछल पड़े।
मैंने पुकारा सही नाम तो उबल पड़े।
नालायक, बेहया, बदतमीज जाने कितने,
लकब मेरी तारीफ में निकल पड़े।
लकब-उपाधि

गुरुवार, 20 मार्च 2014

बहुत

हर कोई है दे रहा लेक्चर बहुत।
बढ़ गये हैं आजकल मच्छर बहुत।
भनभनाना खटमलों ने कर दिया शुरू।
हो गया चुनाव बाअसर बहुत।

सोमवार, 17 मार्च 2014

होली में

बड़ी सुन्दर सजी चौपाल है इस साल होली में।
केसरिया रंगे मोदी से सजी है थाल होली में।
बने सरकार जिसकी भी न कोई फर्क है प्यारे।
मुझे अच्छा लगा हुड़दंगे केजरीवाल होली में ।
बहुत मायूस है बेटा बुझी सी दिख रही है माँ।
तिबारा है नहीं दिखती गलेगी दाल होली में।
जो नेता तीसरे मोर्चे की बातों में भ्रमाये हैं।
उसी घर जायेंगे जिस ओर हो तर माल होली में।
बुढ़ापे में लगाया रंग अन्ना ने वो दीदी को।
अंगूठा देखकर ममता हुई हैं लाल होली में।
लिए लालटेन को लालू टटोलति रास्ता आवें।
कहाँ फेकैं समझ आवै न अपना जाल होली में।
नहीं मैं बात माया की करूंगा इस समय कुछ भी।
बहाली तन से हाथी की है बदली चाल होली में।
मुलायम ने समझ रक्खा है पब्लिक को गधा उल्लू।
लगाई लाल को है डांट ढाई साल होली में।
बहुत ज्यादा नहीं कहना अरे वोटर सम्भल जाओ।
तुम्हारा वोट है तलवार कर दो काल होली में।
ये ई वी एम् है पिचकारी बहुत रंग के बटन इसमें।
जो रुचता हो करो रंगीन उसके गाल होली में।