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गुरुवार, 1 नवंबर 2012

सामर्थ्य


"तो बन्धुवर किस बात पर इतने क्रोधित हो रहे हैं, आप जैसे सम्मानित व्यक्ति को यह शोभा नहीं देता।" उन दोनों में से एक को जोर जोर से आँखें लाल पीली कर बात करते हुए देखकर उनके पास जाकर मैंने भी अपनी वाणी को सक्रिय किया।
"देखिये भाई साहब! मैं किसी से डरता नहीं हूँ। ईंट का जवाब पत्थर से देना जानता हूँ जो मेरी ओर आँखें उठाकर देखेगा उसकी आँखें निकाल लूँगा।" उसने पूरे आवेग से कहा।
"शान्त! बन्धुवर शान्त! यहाँ न तो कोई आपका कोई शत्रु और न ही डरने की आवश्यक्ता फिर यह क्रोध क्यों?" मैंने पूछा।
"मैं कहाँ डरता हूँ, मेरे पास किस चीज की कमी है देखो।" यह कह्ते हुए उसने अपने कोट को थोड़ा ऊपर उठाकर दिखाया, मैंने देखा एक रिवाल्वर उसके पास है। तभी दूसरे ने कहा कि यह तो बेकार की चीज है इस पर दूसरा भड़क गया।
"बेकार की चीज! यह बेकार की चीज है। अरे! ट्रिगर दबाने भर की देर है और काम तमाम।"
दूसरे ने फिर कहा, "अरे! भाई क्रोध करने से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, सामर्थ्यवान वह नहीं होता जो किसी का काम तमाम कर दे सबसे बड़ी सामर्थ्य तो क्षमा करने में होती है।"

"आज के युग में क्षमा कायरता है, और कमजोर आदमी क्षमा नहीं करेगा तो क्या करेगा? सामर्थ्यवान आगे बढ़कर प्रतिशोध लेते हैं।" पहले वाले ने कहा।
उन दोनों का वार्तालाप सुनकर मैंने कहा,"ठीक है बन्धुओं आप विवाद न करें और एक कहानी ध्यान से सुनें, फिर फैसला करें।"
कोई एक वर्ष पूर्व की बात है किसी गाँव में किसना नाम का एक चरवाहा अपने पशुओं को मैदान में चरा रहा था। असावधानीवश उसके कुछ पशु चरते हुए लखना किसान के गेहूँ के खेत में घुस गये। किसना ने देखा तो पशुओं को मोड़ने के लिये खेत की ओर भागा तभी लखना ने देख लिया और बस शुरू हो गया किसना को माँ बहन की गालियाँ देने में।

किसना प्रारम्भ में तो कुछ नहीं बोला बस यही कहता रहा मालिक गलती हो गयी, आगे से ऐसा नहीं होगा। किन्तु लखना ठहरा घमंडी रईसजादा, वह इतनी सरलता से चुप होने वाला नहीं था। उसने किसना को आगे बढ़कर एक थप्पड़ भी लगा दिया। अब किसना की सहनशक्ति जवाब दे गई और एक ही दाँव में लखना चारोंखाने चित। एक तो घमंड ऊपर से अपमान। वह उठ खड़ा हुआ और बोला," अगर तू असल अपने बाप की औलाद है तो यहीं खड़ा रहना। एक तो मेरा खेत चरा लिया, ऊपर से मारपीट भी करता है।"
किसना फिर भी नम्रता से बोला," मालिक पहले आपने ही हाथ छोड़ा था वरना मुझे मारपीट की क्या जरूरत?"
"जरूरत के बच्चे अब तू अपनी अन्तिम प्रार्थना कर ले। आज तुझे ईश्वर भी मेरे हाथों मरने से नहीं बचा सकता।" लखना ने उग्रता से कहा।
"मालिक जिन्दगी मौत तो ईश्वर की दी हुई होती है अगर मेरी मृत्यु तुम्हारे ही हाँथों ही होनी है तो ऐसा ही सही वरना किसी में इतनी ताकत नहीं कि मेरा बाल भी बाँका कर सके।" किसना बोला।
"बस थोड़ी देर खड़ा रह तुझे आज ही अपनी ताकत दिखा दूँगा।" क्रोध में उफनाते हुए लखना शीघ्रता से अपने घर की ओर दौड़ा।
किसना के साथी चरवाहों ने लखना को बहुतेरा समझाया कि मालिक आप सब कुछ कर सकते हैं। लखना को क्षमा कर दें। अब जानवर हैं खेत में गलती से चले गये अब जानबूझ कर तो उन्हें आपका नुकसान करने के लिये छोड़ा नहीं होगा। लेकिन लखना किसना के प्रति पराजय के भाव से ग्रस्त था अतः वह क्यों मानता। वह वैसे ही आँखें लाल-पीली करता हुआ चला गया। घर पहुँचकर उसने अपनी बन्दूक उठाई और लोड करके चल पड़ा खेतों की ओर। इधर किसना अपने जानवरों को एक ओर हाँककर एक पेड़ की टेक लगाकर आराम करने लगा। पर किस्मत के खेल निराले होते हैं जाने कहाँ से एक काला सर्प आया और किसना की गरदन पर काट लिया। कोई १० मिनट भी न लगे होंगे और किसना के प्राण पखेरू उड़ गये। उसके साथियों को उसके इलाज तक का अवसर न मिला। तभी लखना किसना को गालियाँ बकता वहाँ पहुँच गया। ज्योंही उसने किसना की लाश देखी उसके पैरों तले से जमीन खिसक गयी।
लखना को लगा जैसे लाश उसे चिढ़ाकर कह रही हो देखो लखना मैं तो असल बाप की औलाद हूँ अभी तक यहीं पड़ा हूँ किन्तु तुम्हारी सामर्थ्य हार गई।

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‘जिन खोजा तिन पाइंया गहरे पानी पैठ’ इस उक्ति का सत्यार्थ खोजना हो तो डॉ० अनन्त राम मिश्र ’अनन्त’ की ’पंचगंगा’

2. चोर महाराज

मेरी यह पोस्ट चोरों को समर्पित है। मैं यह जानता हूँ मेरी यह पोस्ट पढ़ने के बाद चोर चोरी करना नहीं छोड़ेगा। छोड़े भी क्यों कुतिया की पूँछ छह साल नली में रखो फिर भी टेढ़ी की टेढ़ी फिर मैं लेखक हूँ लिखना क्यों छोड़ूँ। तो चोर महाराज जी मैं लिख रहा हूँ।

3. झूठ बोलना

कक्षा के सामने से गुजरते हुए प्रधानाचार्य जी की नजर जब शोर मचाते हुए बच्चों पर पड़ी तो उन्होंने डपट कर पूछा, "किसका पीरियड है?


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