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रविवार, 10 मार्च 2024

दिग्विजेता


उर दिया है नेह घृत है,
और जीवन वर्तिका।
दीप क्षण क्षण जल रहा है,
विश्व में सत को समर्पित।
पथ सुचिंतित पग सुचिंतित,
प्रेय भी है श्रेय भी।
मनुज भी मैं मनज भी मैं,
प्यास मैं ही मैं पयस्।
पथ पथी गन्तव्य गति सब,
हो गये हैं एक रॅंग।
और मैं संग में तुम्हारे,
दिग्विजेता समर-ध्वज।

शनिवार, 2 मार्च 2024

मन की कर ले

कदरदान तो आयेंगे ही बाकी को फुर्सत न मिलेगी।
जहॉं जमेंगे पीने वाले साकी को फुर्सत न मिलेगी।।
तेरे हित में ये अच्छा है मन की कर ले इस महफिल में,
ओ रक्कासा! यहॉं से जाकर अन्य कहीं इज्जत न मिलेगी।।
नीचे गिरना जल छोंड़े तो प्यासे सब मर जायेंगे,
आग अगर नीचे गिर जाये धरती पर जन्नत न मिलेगी।
मेरी पुस्तक के ग्राहक हैं चूहे, दीमक, चूरन वाले,
मुझे पता है छपवा भी दूॅं कविता की कीमत न मिलेगी।
जिससे जो भी मिली नसीहत सबकी सब मेमोरी में,
जो भी चाहे सब ले जाये बार बार मोहलत न मिलेगी।