बुधवार, 10 नवंबर 2021

मुक्तक


सत्ता के तलवों में चुभती कीलें हैं,
चोरों के सिर पर मँड़राती चीलें हैं,
ये कवि जो हरक्षण में जागा करते हैं,
चलती फिरती कोर्ट और तहसीलें हैं।।

9 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात
    बहुत खूब

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  2. वाह!वाह!गज़ब कहा सर।
    सादर

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