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शनिवार, 31 मई 2014

रसमय मित्र

29/5/1993

किसी अंग्रेजी कविता की स्मृति आधारित भावाभिव्यक्ति--
रसमय मित्र

कितनी रसमय? मित्र ! मनोहर छवि है तेरी|

बस तू आशा किरण अन्य सब छाँव घनेरी|

शाम घिरे ही लौट गेह में तुम आते हो|

बड़े प्रेम से निज बच्चों संग कुछ गाते हो|

निश्चय ही यह प्रेम गीत है गाओ प्यारे|

कानों को अच्छा लगता है मित्र हमारे|

इतनी मिठास यह दर्द कहाँ से लाते हो|

मुझको भी दो जिस मीटर में तुम गाते हो|

मुझको भी अपने भावों का सहभागी कर लो|

इसी नीड़ में फिर चाहे इहलीला कर लो|

सिर्फ आखिरी साँस तुम्हारी मृदु लय टूटे|

सुनता रहूँ निरंतर मैं जब तक तन छूटे|

काश तुम्हारा गीत सभी जग वाले सुनते|

भौतिकता से दूर तुम्हारे रंग में रंगते|

@विमल कुमार शुक्ल'विमल'