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रविवार, 8 जनवरी 2012

हमारे गाँव की सड़कें


आजकल हमारे गाँव की सड़कें बहुत खराब हैं अगर ऐसी ही कुछ दशा आपके यहाँ की सड़कों की भी हो तो कृपया मुझे अवश्य बतायें मेरा दुख कुछ कम हो जायेगा वरना मुझे लगता है कि मेरे यहाँ छोड़कर बाकी सब ठीक है। अपने गाँव की सड़कों की दशा का बखान करते हुये कुछ दोहे हाजिर हैं।
सड़कें मेरे गाँव की, सबसे सुन्दर मित्र।
कदम कदम पर खुदे हैं, गड्ढे बड़े विचित्र॥१॥
गति सीमा के बोर्ड की, यहाँ नहीं दरकार।
दस बारह की चाल में, चलती मोटर कार॥२॥
कन्कड़ पत्थर उखड़कर, बिखर गये हैं खूब।
जल्दी जल्दी नवीकृत, होते टायर ट्यूब॥३॥
वाहन से पत्थर उछल, सिर से जो टकराय।
अस्पताल की आय में, तुरत वृद्धि हुइ जाय॥४॥
मेघों की जब जब कृपा हो जाती है मित्र।
बीच सड़क तालाब के, दिख जाते हैं चित्र॥५॥
छप्पक छप्पक जाइये, ऊपर पैन्ट समेट।
चप्पल जूते का हुआ, बिल्कुल मटियामेट॥।६॥
फिसलन से बचिके अगर, सौंदि बौंदि घर जाउ।
इच्छा होइ न होइ पै, मलि मलि खूब नहाउ॥७॥
नाली सड़कन पर बहैं, लिये निजी मलमूत्र।
जनप्रतिनिधि कर्मठ यहाँ, बतलाते हैं सूत्र॥८॥
अगर तुम्हारी गली भी,यूँ ही खस्ताहाल।
फिर तो सब कुछ ठीक है, करिये नहीं बवाल॥९॥


लेखक की इस ब्लॉग पर पोस्ट सामग्री और अन्य लेखन कार्य को पुस्तक का आकार देने के इच्छुक प्रकाशक निम्नलिखित ईमेल पतों पर सम्पर्क कर सकते हैं।
vkshuklapihani@gmail.com
vimalshukla14@yahoo.in

मँहगाई


लोग अक्सर मँहगाई का जिक्र करते हैं और बताते हैं कि उनके जमाने में एक रुपये में जितनी चीजें मिल जाती थीं उतनी चीज खरीदने के लिये अब सैकड़ों रुपये चाहिये मगर वे यह भी बताते हैं कि पहले आदमी के पास इतनी सुख सुविधाओं के साधन नहीं थे। तो क्या कुछ सम्बन्ध है मँहगाई और अमीरी गरीबी में अपने दोहों के माध्यम से मैंने देख पाने व दिखा पाने का प्रयत्न किया है कितना सफल हूँ यह आप जानें।
मँहगाई की कृपा से, बनियाइनि है कोट।
रूपया पहले कठिन अब, सरल हजारी नोट॥१॥
पुरखे नंगे पैर ही,पहुँच गये निजधाम।
मँहगाई का वक्त है, लरिका पहिने चाम॥२॥
मन्दी में सिर पर रही, कबहुँ न साबुत फूस।
आज भवन कन्क्रीट का,छ्तों टँगे फानूस॥३॥
मंदी में एक साइकिल चली चवालिस साल।
मँहगाई में बदलती फटफटिया हर साल॥४॥
मिट्टी का दीपक कहाँ घर घर रहा नसीब।
मँहगी विद्युत लैम्प की सब जानें तरकीब॥५॥
बप्पा को सरकार का मिला नहीं स्कूल।
कान्वेन्ट में पढ़ रहे मेरे घर के फूल॥६॥
प्रेमचन्द की कफन के घीसू माधव नित्य।
जन्क फूड भरपेट खा, व्हिस्की पी करें नृत्य॥७॥
मँहगाई ने भर दिये बहुतों के भण्डार।
मन्दी में सूने रहे सब, आँगन घर द्वार॥८॥
तेजी मन्दी पर बहस, बिल्कुल है बेकार।
बहती गंगा द्रव्य की, जो उतरे सो पार॥९॥


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