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बुधवार, 30 नवंबर 2011

झूठ बोलना


कक्षा के सामने से गुजरते हुए प्रधानाचार्य जी की नजर जब शोर मचाते हुए बच्चों पर पड़ी तो उन्होंने डपट कर पूछा, "किसका पीरियड है? "स...सर! अंग्रेजी का," बच्चों ने सहमकर उत्तर दिया। "कौन पड़ाता है?" "सर! मिश्रा जी सर!" प्रधानाचार्य जी ने मिश्रा जी को बुलवाया और बच्चों को पढ़ाने के लिये कहकर चले गये।
मिश्रा जी ने बच्चों को डाँटा "बड़े गधे हो, अपने अध्यापक के सम्मान में इतना ही कह देते कि पीरियड खाली है। कम से कम मेरी डाँट तो नहीं पडती बड़े हरिश्चन्द्र बने फिरते हो। उन्हीं मे से एक बच्चा अपने घर आया और उसकी माँ ने पूँछा,"बेटे आज स्कूल मे क्या सिखाया गया?" "बच्चे ने मासूमियत से जवाब दिया, "माँ झूठ बोलना।"

शनिवार, 26 नवंबर 2011

टी ई टी की नौटंकी


उत्तर प्रदेश में टी ई टी के रिजल्ट घोषित हो गये हैं और सरकार एक बार फिर बेरोजगारों से मजाक करने के मूड में है खबर है कि एक दो दिन में विज्ञापन जारी किये जायेंगे फिर आवेदन माँगकर अध्यापकों की भर्ती की जायेगी एक आवेदक ३ जिलों से आवेदन कर सकता है। मेरी समझ में यह नहीं आता कि आखिर छल करने के लिये सरकार को बेरोजगार ही मिले थे।अव्वल तो एक विद्यार्थी जिसने ग्रेजुएट की परीक्षा पास करके बी एड या बी टी सी की एन्ट्रेन्स परीक्षा पास करके उसने बाकायदा ट्रेनिंग ली है फिर अध्यापक होने की योग्यता उसने हासिल की है। उसका टी ई टी के नाम पर एक और इम्तहान ही गलत है। दर असल टी ई टी की परीक्षा भारत की सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था पर एक ऐसा करारा तमाचा है जो हमारे देश के अकल के अन्धे नीति निर्धारकों को महसूस नहीं होता।
सरकार के द्वारा इस परीक्षा का आयोजन यह बताता है कि हमारे देश के नीति नियन्ता एक ऐसी शिक्षा व परीक्षा व्यवस्था देने में नाकामयाब रहे हैं जिसमें से होकर अच्छे स्टूडेन्ट बाहर निकलें ताकि बार बार उनकी परीक्षा की आवश्यकता ही न रहे तथा संस्थानों के द्वारा जारी सर्टीफिकेटों पर विश्वास किया जा सके।

वास्तव में शिक्षा व्यवस्था इस कदर चरमरा गई है कि आज बिना एक भी दिन स्कूल में जाये हुए भारत खासकर यू पी में कोई भी डिग्री हासिल की जा सकती है। ऐसे में क्या गारंटी है कि इस परीक्षा के बाद अच्छे अध्यापक विद्यालयों को हासिल होंगे। वास्तव में सरकार बेरोजगारों से कमाई करने में लगी है आवेदन फार्म भरवाने के नाम पर। जितनी ज्यादा बार आवेदन फार्म भरे जायेंगे उतनी बार आवेदकों से शुल्क वसूला जायेगा।

अच्छा होगा कि एक ऐसी ईमानदार शिक्षा परीक्षा प्रणाली विकसित की जाये जिससे अच्छे विद्यार्थी बाहर निकलें जिनकी अंकतालिकाओं पर विश्वास किया जा सके और उन्हें बार बार परीक्षाओं से न गुजरना पड़े। फिलहाल टी ई टी के बारें में इतना चाहूँगा कि अब जो पास हो गये हैं उनसे कोई आवेदन न भरवाकर मेरिट के आधार कौंसिलिंग करा ली जाये और क्रम से आवेदकों की च्वाइस पूँछ्कर उन्हें जिले व स्कूल आवंटित कर दिये जायें तो सरकार की बड़ी मेहरबानी होगी।

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

शरद पवार को थप्पड़


कृषि मन्त्री शरद पवार को थप्पड़ मारना लोकतन्त्र में एक निन्दनीय घटना है तथापि हमारे नेताओं को यह सोंचना पड़ेगा कि आखिर ऐसा करने के लिये  के जिम्मेवार कौन है लोकतन्त्र की दुहाई देने वाले तब कहाँ होते हैं जब वे अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना भूल जाते हैं और पब्लिक देखती है कि एक ओर वह त्रस्त है और नेता लोग मौज उड़ाते हैं। 

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

पिहानी हरदोई मार्ग


आज दिमाग में आया कि कुछ आस पास के बारे में लिखा जाये सामने नजर उठाकर देखा तो सड़क पर एक बोर्ड लगा था पिहानी हरदोई मार्ग। सड़क पर एक निगाह डाली इसलिये कि कुछ खास नजर आ जाये मगर यह सड़क भी जिले की दूसरी सड़कों की तरह ही टूटी फूटी नजर आई। समझना मुश्किल कि सड़क में गड्ढे या गड्ढों में सड़क। ऐसा तब है जब कि इस जिले में ९ विधान सभा क्षेत्र हैं और सभी पर सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी के विधायक सत्तासीन हैं।
आपको क्या लगता है कि यहाँ के विधायक सो रहें हैं जी नहीं। जो सत्ता के नशे में चूर होते हैं उन्हें यह पता नहीं होता कि किन वायदों के साथ वे सत्ता में पहुँचे।

रविवार, 20 नवंबर 2011

तुम फिर आ गये



तुम फिर आ गये, चेहरा बदल कर।
चिन्ह बदल कर दल बदल कर।
यह तो नहीं चाहा था, कि इतनी जल्दी लौट आओ।
जिस वायदे के साथ भेजे गये थे, निभाना तो दूर याद भी न रख पाओ।
तुम कुछ सैकड़े लोग, पाँच साल भी इकट्ठे रह नहीं पाते।
तो सवा अरब जनता की एकता अखण्डता को कैसे सँभाल पाओगे।
मन्त्रालय कि फाइलें बेच आये हो देश को कैसे नहीं बेच खाओगे।
मेरे प्रश्नों के उत्तर दे दो तो वोट पाओगे अन्यथा लोकतान्त्रिक ढँग से पीटे जाओगे।
तुम फिर आ गये, चेहरा बदल कर।
चिन्ह बदल कर दल बदल कर।

मन्जिल


रास्ते बन्द हैं वे सब जिन्हें मन्जिल से मेरी वास्ता।
फिर भी यह गनीमत है कहीं तो मेरी मन्जिल है।
साथ कोई हो न हो जाना तो जरूरी है।
पथ में रोशनी हो या अँधेरा फूल या काँटे।
जानता हूँ तुम सदा ही साथ हो,
कैसा भय कैसी तनहाई, काँटे क्या अन्धेरा क्या?